एक माह में 261 बच्च्चों की मौत- पड़ताल में नजर आईं स्वास्थ्य सेवाओं के नेटवर्क की खामियां

पीबीएम हॉस्पिटल में एक महीने में हुई 261 बच्चों की मौतों पर उठ रहे सवालों के बीच भास्कर ने जब तथ्यों की छानबीन की, डाक्टर्स से लेकर मरीजों और उनके परिजनों तक से बात की तो चौंकाने वाली बात यह सामने आई कि सुनने-देखने में मौतों का जो आंकड़ा डरावना लग रहा है वह हर साल कमोबेश इतना ही रहता है। मौतों की तह में जाने पर जहां हॉस्पिटल की व्यवस्थाओं से लेकर स्वास्थ्य सेवाओं के नेटवर्क की खामियां भी इसके लिए जिम्मेवार नजर आई।


बीते एक साल की ही बात करें तो 220 बैड वाले पीबीएम शिशु हॉस्पिटल में 25876 बच्चों को भर्ती करवाया गया। इनमें से 9218 बच्चे ऐसे थे जिन्हें गंभीर हालत में हॉस्पिटल लाया गया और आते ही उन्हें आईसीयू और वेंटीलेटर की जरूरत पड़ी।


इनमें ऐसे नवजात शिशु भी थे जो प्री-मैच्योर या कम वजन के थे वहीं जीरो से 13 साल के ऐसे बच्चे भी रहे जिन्हें संभागभर के दूरस्थ गांवों से उस वक्त लाया गया जब हालत बहुत बिगड़ चुकी थी।


72 बैड के नियोनेटल आईसीयू (निकू) और 08 बिस्तरों वाले पीडिएट्रिक आईसीयू (पिकू) में भले ही एक बैड पर दो से तीन बच्चों को रखना पड़ा लेकिन यहां पहुंचने के बाद 7537 बच्चों की जान बच गई। पीड़ादायी यह है कि एक साल में 1681 बच्चों की श्वांसों पर विराम लग गया। इन अकाल मौतों में 1267 नवजात थे।


ये मौतें यूनिसेफ की उस रिपोर्ट की पुष्टि करती हैं जिसमें कहा गया है कि भारत में प्रति एक हजार जीवित जन्म में से 39 बच्चे दम तोड़ देते हैं। टर्सरी केयर सेंटर या मेडिकल कॉलेज से जुड़े हॉस्पिटल वह जगह है जहां संभाग के चार जिलों के अलावा आस-पास के प्रदेशों के ऐसे बच्चों को लाया जा रहा है जिनकी हालत काफी नाजुक होती है। ऐसे में सिर्फ आठ बैड का पीआईसीयू यानी पीकू संसाधनों के स्तर पर सबसे बड़ी कमी है।


भले ही मेंटीनेंस के लिहाज से ही आयुट ऑफ सर्विस हो लेकिन 40 में से 10 वेंटीलेटर औसतन हर वक्त काम में नहीं आने से उन गंभीर बच्चों की जान नहीं बच पाती जिन्हें समय पर वेंटीलेटर नहीं मिलता। हाथ में अंबूबैग वाला गुब्बारा थामे मरीज के परिजन कृत्रिम श्वास देते रहते हैं लेकिन शिशु की सांसों की डोर टूट जाती है। लगभग 70 में से 25 वार्मर की खराबी भी ठंड से सिकुड़ चुकी कई श्वांसों के लिए जिम्मेवार तो होगी ही।



कितने रोगी, कितनी मौत



  • 25876 कुल रोगियों को वर्षभर में शिशु हॉस्पिटल में भर्ती किया गया।

  • 16658 को सामान्य वार्ड में रखा गया जिनमें से एक भी मौत नहीं हुई।

  • 7810 को एनआईसीयू यानी नवजात बच्चों के आईसीयू में रखा इनमें से 1267 यानी 16.1 फीसदी बच्चों की मौत।

  • 1408 को पीआईसीयू में रखा जिनमें एक महीने से लेकर 14 वर्ष तक के गंभीर बच्चे शामिल। इनमें से 414 यानी 29.4 फीसदी की मौत।

  • 6.49 बच्चे नहीं बचे कुल 25876 में से।

  • 6.34 फीसदी बच्चों की औसतन मौत होती है हर साल बीते पांच सालों के भर्ती रोगियों और मौत के आंकड़ों के मुताबिक।


मौतों के लिए हम सब जिम्मेवार



  • नंबर एक : कम वजनी, प्री-मैच्योर बच्चा होना यानी कुपोषण और गर्भावस्था में ध्यान नहीं देना, गर्भवती-परिजन सहित इलाके की स्वास्थ्य कार्यकर्ता।

  • नंबर दो : सब-सेंटर-पीएचसी के डाक्टर जो हाईरिस्क डिलीवरी को चिह्नित नहीं करने या करने के बावजूद इन्हें समय पर रैफरल सेंटर पर नहीं भेज पाते

  • नंबर तीन : रैफरल सेंटर या पीबीएम जैसे टर्सरी केयर सेंटर जहां इतनी भीड़ है कि मरीज की आवाज तक नहीं सुनी जाती, प्रसव के बाद एकबारगी बच्चा डस्टबिन तक में जा गिर चुका है

  • नंबर चार : सरकार, पांच साल में हॉस्पिटल्स में तीन गुना प्रसव, इतना ही नवजात बच्चों के इलाज का भार बढ़ा लेकिन बिस्तर-संसाधन के नाम पर कुछ भी नहीं बढ़ा

  • जिम्मेवार बोले
     


भाजपा का आरोप... मौतों के लिए सरकार जिम्मेवार, मुख्यमंत्री को जवाब देना चाहिए
 


बच्चों की मौत का आंकड़ा सामने आते ही सियासत भी गर्माने लगी है। शहर भाजपा अध्यक्ष अखिलेश प्रतापसिंह भाजपा और युवा मोर्चा के नेताओं सहित शनिवार को पीबीएम हॉस्पिटल जा पहुंचे। एचओेडी डा.जी.एस. सेंगर से मिल मौतों पर नाराजगी जताई।


सुपरिंटेंडेंट को फोन किया और प्राचार्य को भी संदेश भेजा। कहा, हॉस्पिटल में बच्चे मर रहे हैं लेकिन सरकार ध्यान नहीं दे रहे। इंतजाम बहुत बुरे हैं।


शहर भाजपा के निवर्तमान अध्यक्ष डा.सत्यप्रकाश आचार्य ने कहा, बच्चों के इलाज के पूरे इंतजाम नहीं कर पा रही सरकार इन मौतों के लिए जिम्मेवार है। चिकित्सा मंत्री के हाथ में कुछ भी नहीं है। खुद मुख्यमंत्री को इन मौतों के लिए जनता को जवाब देना चाहिए।


नोखा के विधायक बिहारीलाल बिश्नोई ने कहा, यह अफसोसजनक है संभाग के सबसे बड़े और मेडिकल कॉलेज से जुड़े हॉस्पिटल में हमारे नौनिहालों का जीवन सुरक्षित नहीं रहा। सरकार इस पर स्पष्टीकरण दें। भाजपा नेता मोहन सुराणा, सुरेन्द्र सिंह शेखावत, अशोक भाटी, भगवानसिंह मेड़तिया, वेद व्यास आदि ने इन मौतों पर आक्रोश जताया।


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